Saturday, 9 February 2019

एक मंदीर जहां पर दान पेटी नहीं..पर है दोनो वक्त रोटी! - श्री जलाराम मंदिर, विरपुर।



जलाराम बापा का जन्म सन्‌ 1799 में गुजरात के राजकोट जिले के वीरपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रधान ठक्कर और माँ का नाम राजबाई था। बापा की माँ एक धार्मिक महिला थी, जो साधु-सन्तों की बहुत सेवा करती थी। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर संत रघुवीर दास जी ने आशीर्वाद दिया कि उनका दुसरा प़ुत्र जलाराम ईश्वर तथा साधु-भक्ति और सेवा की मिसाल बनेगा।
16 साल की उम्र में श्री जलाराम का विवाह वीरबाई से हुआ। परन्तु वे वैवाहिक बन्धन से दूर होकर सेवा कार्यो में लगना चाहते थे। जब श्री जलाराम ने तीर्थयात्राओं पर निकलने का निश्चय किया तो पत्नी वीरबाई ने भी बापा के कार्यो में अनुसरण करने में विश्चय दिखाया। 18 साल की उम्र में जलाराम बापा ने फतेहपूर के संत श्री भोजलराम को अपना गुरू स्वीकार किया। गुरू ने गुरूमाला और श्री राम नाम का मंत्र लेकर उन्हें सेवा कार्य में आगे बढ़ने के लिये कहा, तब जलाराम बापा ने 'सदाव्रत' नाम की भोजनशाला बनायी जहाँ 24 घंटे साधु-सन्त तथा जरूरतमंद लोगों को भोजन कराया जाता था। इस जगह से कोई भी बिना भोजन किये नही जा पाता था।
माघ शुक्ल द्वितीया, विक्रम संवत १८७६ को श्री जलाराम बापाने सदाव्रत (भंडारा, लंगर) शुरु किया उसे इस साल १९९ साल पूरे हुए।
ये पढकर आप को गर्व एवम्‌ आश्चर्य होगा की आज से १९ साल पूर्व ०९-०२-२००० को संत शिरोमणी पूज्य श्री जलाराम बापा के पावन  धाम श्री जलाराम मंदिर, विरपुर में किसी भी प्रकार का दान, भेंट एवम्‌ सौगात लेना बंद हुआ था।
हां, आप ने सही पढा,  श्री जलाराम मंदिर, विरपुर में दान पेटी का अस्तित्व ही नहीं है और वहां पर दोनो समय भक्तों को "प्रसाद" (भोजन, लंगर, भंडारा)  उपलब्ध कराया जाता है। जहां आज के समय में कोइ भी धर्म के पूजा स्थल, आश्रम स्थलो पर दान, सोना, चांदी, हीरे स्विकार किए जाते हैं वहीं श्री जलाराम मंदिर, विरपुर ने एक नई मिशाल पेश की है। आप चाह कर भी कोई भेंट या पैसे का चढावा नहीं कर सकते।

कैसे जाएं ः १) बाय रोड - अहमदाबाद से राजकोट आप बाय रोड जा सकते हैं। राजकोट से जुनागढ (२४ घंटे राज्य बस परिवहन की बसें मिलेगी) जाती हुइ कोई भी बस विरपुर रुकेगी। विरपुर हालांकी बडा गांव है, पर बहुत अच्छे होटेल नहीं मिल पायेंगे। रहने के लिए आप राजकोट या जुनागढ रुक सकते हैं। राजकोट से विरपुर की दुरी ५८ कि.मी. है।
           २) बाय ट्रेईन - अहमदाबाद से जुनागढ (या सोमनाथ - वेरावल) की और जाती हुइ ट्रेईन में विरपुर स्टेशन चेक कर ले। कुछ गाडियां वहां रुकती हैं।

संत श्री जलाराम बापा के भक्तों ने देश - विदेश में उनके मंदीर बनवायें है और बापा से प्रेरित होकर, उनाके आशीर्वाद से वहां भंडारा का आयोजन भी करते हैं। भक्त सिर्फ एक ही धुनी में रत है.....

देने को टुकडो भलो, लेने को हरि नाम;
ताके पदवंदन करुं, जय जय जय जलाराम।

~ गोपाल खेताणी


Sunday, 3 February 2019

२६ जनवरी...बचपन की ख्वाहीश जो साकार हुई!


२६ जनवरी... एक ऐसा दिन जब मैं और मेरे दोस्त स्कूल के दिनो में ध्वजवंदन कर तुरंत घर पे आकर टीवी पर चीपक जाते थे....हां .. परेड देखने । आप सब को भी वो दिन याद आ रहे होंगे.. हैं ना?

स्कूलींग राजकोट (गुजरात) में हुइ। उस समय में सोचता था की दिल्ही वालों को कितना मजा आता होगा...परेड लाइव देखने का! बचपन से ख्वाहीश थी की काश एक बार  ये परेड लाइव देखने को मिले।
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दिल्ही आए चार साल हो गए लेकिन परेड देखने के संयोग बने नहीं! इस साल मौका मिला (पास मिल गया!) और हम लोग[ढाइ लोग - हम, हमारी वो जी, और हमारी छुटकी जी.. ः)] सुबह साढे छः बजे पहुंच गये दिल्ही हाइ कोर्ट तक, क्युंकी आगे कोइ भी वाहन को जाने नहीं दिया.. #SecurityReasons। 

भाई साहब (बहन जी भी!), सुबह सुबह इतने लोग साथ में चल रहे थे मानों सहीमे सब एक उत्सव मनाने जा रहे हो। बच्चे बुढ्ढे सब के चहेरे पे एक अजीब उत्साह छलक रहा था।

हर जगह तैनात पुलिस कर्मीयोंने रास्ता दिखाने एवम्‌ पास पे जिस गेट से प्रवेश करना था उसके लिए मदद की।
उन सभी कर्मचारीयों को सलाम। क्युंकी मेरे जैसे कई लोग उनको परेशान कर रहे थे मगर ये कर्मचारीयोंने  उत्साहीत हो के सब को सही माहिती प्रदान की।

नौं बजे से पहले पहले हम राजपथ पर; राष्ट्रपति भवन से इन्डिया गेट की और से देखें तो बांइ और शास्त्री भवन के पास बैठें। आगे से दसवीं पंक्ति में हमे कुर्सी मिल गई। 
अहा! वहां का जोश और जूनुन देख तन मन में राष्ट्रप्रेम का जझ्बा ओवरलोड हो गया..और क्युं ना हो!
बचपन की ख्वाहीश जो आज पूरी होने जा रही थी।

परेड शरु होने वाले थी, मैंने बगल में बैठे महोदय से हाय हैलो कीया। श्री हिरालालजी अपने परिवार के साथ आए हुए थे। उनके साथ  बातें कर मन प्रसन्न हो गया। उन्होंने काफी माहिती दी..वो पहले कई बार परेड देख  चूके थे।

हम बातें कर रहे थे और तभी महामहीम राष्ट्रपतिजी का आगमन हुआ। उनकी कार हमें दिखी, सब का अभिवादन वे हाथ हिलाकर कर रहे थे.. मन को कहीं बहुत अच्छा लग रहा था। थोडी देर में हैलिकोप्टर से फूल-पंखडीयों की वर्षा हम सब पर हुई। मेरी बेटी फूली न समाई। 

और फीर मार्च पास्ट, मिसाइल, टेन्क और सेना के अत्याधुनीक हथीयार एवम्  उपकरण (वज्र टेन्क देखकर बहुत उत्साहीत हुआ... मेरे L&T वाले दोस्त इस प्रोजेक्ट का हिस्सा रहे हैं।), राज्यों की अनुपम झांखीया, बिएसएफ के जवानों के मोटरसाइकल पर हैरतअंगेज करतब और अंत में वायुसेना का शानदार शो।

वाह, ये क्षण जिंदगी भर के लिए मन-मस्तिष्क में अंकित हो गए। 

आते और जाते समय, हमारा Josh High था।

बस, यही कहना चाहुंगा की अगर आप दिल्ही के निवासी है, या आसपास रह रहे हैं तो २६ जनवरी की परेड देखने जरूर जाइये। सच मानीये, परेड देख आप का दिल भी बोल उठेगा

हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा; 
यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहाँ से, 
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा; 
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी.. सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा । 

जय हिन्द...जय हिन्द की सेना।

~ गोपाल खेताणी


परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद

अब्दुल हमीद   का जन्म  1 जुलाई , 1933 को   यूपी के गाजीपुर जिले के धरमपुर गांव में   हुआ था।   उनके पिता मोहम्मद उस्मान सिलाई का काम करते थे...