सब से लंबे चलने वाले इस भारतीय त्योहार की खास बात ये है की ये कोई
एक विशिष्ट प्रांत का त्योहार ना रहकर पूरे देशमें मनाय जाता है। हां, ये जरूर है की
त्योहार मनाने की रीत-रस्म अलग है पर मक्सद एक है और वो है, शकित स्वरूपा की आराधना
कर उसके आशिर्वाद ग्रहण करना।
पौष, चैत्र, अषाढ और अश्विन – ये चार नवरात्रों में से अश्विन नवरात्रि
बडी धूमधाम से मनायी जाती है!
बंगाल की कालीपूजा से लेकर गुजरात के गरबा एवं दांडीया, उत्तर भारत
की दुर्गा पूजा से लेकर दक्षीण में लक्ष्मी पूजा तक, नवरात्रोमें नौ देवीयों के आशिर्वाद
लिए जाते हैं।
ये नौ देवियाँ इस प्रकार है :-
गुजरात में नवरात्रि का विशिष्ट महत्व है।
नवरात्रों के दौरान गुजरात के घरोमें एवं मंदीरोमें घट स्थापन होता
है! मिट्टी का छेद वाला कलश जीसे ‘गरबा’ बोलते हैं उसे स्थापित कीया जाता है। नौ दिन
नौ रात तक उसमें ज्योत जगाइ जाती है और दशवे दिन ‘गरबा’ का विसर्जन होता है!
गरबा ब्रह्मांड का प्रतिक माना जाता है। गरबे में २७ छेद होते है।
९ छेद वाली तीन रेखाएं यानी २७ छेद. २७ छेद यानी २७ नक्षत्र. २७ नक्षत्र के चार चरण
होते है। २७ X ४ = १०८। १०८ संपूर्ण अंक है जो ब्रह्मांड का अंक माना जाता है। नवरात्रि
के ये नौ दिन गरबा की प्रदक्षिणा करते है उन्हें ब्रह्मांड की प्रदक्षिणा करने का पुण्य
मिलता है ऐसा माना जाता है। पर गरबा के आसपास ये खास न्रुत्य क्युं करते है?
मां दुर्गाने नौ दिन नौ रात तक महिषासुर से युद्ध किया और दसवे दिन
उसका वध किया। इसी कारण नौ रात तक मातारानी के भक्ति गीत गाये जाते है, और “गरबा” के
आस पास एक अलग अलग प्रकार के ‘रास’ (न्रुत्य) होते है जो अब “गरबा” के नाम से मशहूर
है। उसे आधुनीकीकरण में प्रस्तुत कर डांडीया कर दीया है मगर वो गरबा नहीं होकर सिर्फ
व्यक्तीगत मनोरंजन है। पूरी दुनिया में गुजरात के डांडीया मशहूर है, मगर वो डांडीया
और मां की आराधना का कोई लेना देना नहीं है।
जैसे आगे बताया की नवरात्रिमें मां की अर्चना के लिए जो ‘रास’ किए
जाते हैं वे छोटी बच्चीयां एवं कन्याओ के द्वारा होते है और उन्हें ‘रास – गरबा’ का
अभ्यास करवाया जाता है। उनको उस नौ दिन देवीमां का स्वरुप माना जाता है। नौ दिन तक
उन्हे उपहार दिये जाते हैं। इस उपहार को “ल्हाणी” कहते है। “ल्हाणी” देने वाले खुद
को धन्य समजते है। ये कन्याएं जो मां का स्वरुप है वो अदभुत गरबा रास प्रस्तुत करती
है। गरबा रास को ‘गरबी’ के नाम से भी जाना जाता है। लडकों को भी कुछ विशिष्ट प्रकार
के रास के लिए अभ्यास करवाया जाता है जैसे की तलवार रास, मशाल रास। सोशियल मिडियामें
आप मशाल रास, तलवार रास, डाकला, दिया रास खोजकर देख सकते हैं। ये प्राचीन कला अब भी
मातारानी के भक्तो की आस्था से गुजरात के पश्चीमी प्रांत; सौराष्ट्र और कच्छ में जीवंत
है। अगर नवरात्रि के दिनो में गुजरात जाइए तो ये गरबा जरूर देखीएगा।
जय माता दी।
~
गोपाल खेताणी
Very informative
ReplyDeleteVery informative
ReplyDeleteThanks all for your valuable comments!
ReplyDeleteExcellent article... covering auspiciously adorable information about our widely enjoyed famous festival Navratri...great job Gopal Kumar... - Deepak Buddhdev👍👍👍
ReplyDeleteThank you so much Deepak ji... ur motivation inspire me to write such kind of articles
DeleteGood information..
ReplyDeleteThank you
DeleteVery nice
ReplyDeleteThank you so much Divya ji
DeleteExcellent description of Navdurga festival
ReplyDeleteThank you so much
DeleteGood information. Came to know a different perspective of garba. Keep writing.
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