वो
ट्रीगर पर रखी उंगली पे वो अपनी गर्म सांसे छोड रहा था। अंधेरेमें भी उसकी बाझ नजर किसी को ढूंढ रही थी। पास में बैठा कालु भी उर्जा बचाने अपनी जबान बहार कम ही नीकाल रहा था। दोनों को शिकार की तलाश थी।
कुछ गीरने की आवाझ आई। कालु झपका, अपनी पूंछ हिलाइ, जबान निकाली.. और इस चक्कर में नझर हटी । दुसरे दीन पुलिस को कुत्ता बेहोश मिला। लाश के हाथ में पिस्टल थी, छाती पर कातिलाना घाव, होठों पर मुस्कान और गालों पर लिप्स्टीक के निशान!
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गोपाल खेताणी
ट्रीगर पर रखी उंगली पे वो अपनी गर्म सांसे छोड रहा था। अंधेरेमें भी उसकी बाझ नजर किसी को ढूंढ रही थी। पास में बैठा कालु भी उर्जा बचाने अपनी जबान बहार कम ही नीकाल रहा था। दोनों को शिकार की तलाश थी।
कुछ गीरने की आवाझ आई। कालु झपका, अपनी पूंछ हिलाइ, जबान निकाली.. और इस चक्कर में नझर हटी । दुसरे दीन पुलिस को कुत्ता बेहोश मिला। लाश के हाथ में पिस्टल थी, छाती पर कातिलाना घाव, होठों पर मुस्कान और गालों पर लिप्स्टीक के निशान!
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गोपाल खेताणी
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