Monday, 30 October 2017

आज की नझ्म !

ये शहर मुझे पागल समझता है -- युवा कवि पल्लव श्रीवास्तव



जब जब उंगलियो को हवा मे घुमा कर तुझे यूं महसूस करता हूँ 
तब तब ये शहर मुझे पागल समझता है ।।
जब जब ये बारिश की बुन्दे छलक्ती है मैखाने मे
तब साकी से मांगता हूँ  पिला दे कोई 
जाम ऐसा की उतार जाये नशा उसका
तब तब ये शहर मुझे पागल समझता है ।।

~~
पल्लव श्रीवास्तव

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