Thursday, 1 July 2021

परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद



अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई, 1933 को यूपी के गाजीपुर जिले के धरमपुर गांव में हुआ था। उनके पिता मोहम्मद उस्मान सिलाई का काम करते थे, लेकिन हमीद का मन इस काम में नहीं लगता था। उनकी दिलचस्पी लाठी चलाना, कुश्ती का अभ्यास करना, नदी पार करना, गुलेल से निशाना लगाना जैसी चीजों में थी।

20 साल की उम्र में अब्दुल हमीद ने वाराणसी में भारतीय सेना की वर्दी पहनी। उन्हें ट्रेनिंग के बाद 1955 में 4 ग्रेनेडियर्स में पोस्टिंग मिली। 1965 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध की घड़ी करीब आ रही थी, उस वक्त वह छुट्टी पर अपने घर गए थे। लेकिन पाक से तनाव बढ़ने के बीच उन्हें वापस आने का आदेश मिला। 

वीर अब्दुल हमीद पंजाब के तरनतारण जिले के खेमकरण सेक्टर में पोस्टेड थे। पाकिस्तान ने उस समय के अमेरिकन पैटन टैंकों से खेमकरण सेक्टर के असल उताड़ गांव पर हमला कर दिया। उस वक्त ये टैंक अपराजेय माने जाते थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अब्दुल हमीद की जीप 8 सितंबर 1965 को सुबह 9 बजे चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों से गुजर रही थी। वह जीप में ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठे थे। उन्हें दूर से टैंक के आने की आवाज सुनाई दी। कुछ देर बाद उन्हें टैंक दिख भी गए। वह टैंकों के अपनी रिकॉयलेस गन की रेंज में आने का इंतजार करने लगे और गन्नों की आड़ का फायदा उठाते हुए फायर कर दिया।

अब्दुल हमीद के साथी बताते हैं कि उन्होंने एक बार में 4 टैंक उड़ा दिए थे। उनके 4 टैंक उड़ाने की खबर 9 सितंबर को आर्मी हेडक्वॉर्टर्स में पहुंच गई थी। उनको परमवीर चक्र देने की सिफारिश भेज दी गई थी। इसके बाद कुछ ऑफिसर्स ने बताया कि 10 सितंबर को उन्होंने 3 और टैंक नष्ट कर दिए थे। जब उन्होंने एक और टैंक को निशाना बनाया तो एक पाकिस्तानी सैनिक की नजर उन पर पड़ गई। दोनों तरफ से फायर हुए। पाकिस्तानी टैंक तो नष्ट हो गया, लेकिन अब्दुल हमीद की जीप के भी परखच्चे उड़ गए। वतन की हिफाजत के लिए 'परमवीर' हमीद कुर्बान हो गए। इस युद्ध में साधारण "गन माउनटेड जीप" के हाथों हुई "पैटन टैंकों" की बर्बादी को देखते हुए अमेरिका में पैटन टैंकों के डिजाइन को लेकर पुन: समीक्षा करनी पड़ी थी।

अब्दुल हमीद को उनके अदम्य साहस और वीरता के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। 


Saturday, 14 November 2020

दीपोत्सव – खुशीयों का खजाना!

 

दीपोत्सव – खुशीयों का खजाना!

 

त्योहार – मानव जीवन को नवपल्लवित करने वाले दिन। आपने बचपन में स्कूल के दिनों में त्योहार पर अवश्य निबंध लिखा होगा। जब भी त्योहार, उत्सव की बात आती है तो मन मंद मंद मुस्कुराहट बिखेरने लगता है। हमारी आस पास एक सकारात्मक भावना जागृक होने लगती है और इसका असर हमारे तन – मन पर होने लगता है, और कभी कभी धन पर भी, सही है ना?

वैसे तो हम सभी त्योहार जी भर के मनाते है, मगर तरूण अवस्था में, जवानी में (और कभी तो आजीवन) हर एक का मनपसंद त्योहार अलग अलग हो सकता है! कोई १५ अगस्त, २६ जनवरी (गुजरात में १४ जनवरी, संक्रांति) की राह देखता है कि कब किसी से (पतंग के) पेच लडाउं; तो किसी को रंगबिरंगी दुनिया ही पसंद है तो होली ज्यादा पसंद होती है।

किसी को लोहडी में भंगडा करना है तो, कोई छ्ठ्ठ पूजा में सूर्यदेव को रिझाना चाहता है। कोई पोंगल – ओणम का बेसबरी से इंतजार करता है तो कोई बीहु – उगाडी का। महादेव के भक्त सावन में कावड यात्रा करने को उत्सुक होते है तो नवरात्रि में गरबा करने, जगराता करने  को उत्सुक। बाप्पा के भक्त दस दिन पंडाल में डेरा जमाये बैठे रहेते हैं तो क्रिष्न कन्हैया का जन्मोत्सव मनाने ब्रिजवासी जन्माष्टमी के दिन तैयार!

भले ही ये सभी त्योहार हम जी भर के मनाये हो लेकिन जब भी ये दिवाली आनी होती है तब इसका रोमांच, इसका उत्साह बढकर होता है, सही है ना? (IPL Fans को ज्यादा पता होगा!) नवरात्रि में माता के जगराता, भजन, रामलीला और गरबा खेल कर अभी थकान मिटाने  की सोच ही रहे होते है की सब लोग दिवाली की साफ सफाइ में लग जाते है। पुराने सामान –रद्दी खरीदने वाले गलियो में निकल पडते है; झाड़ू – वाइपर – फिनाइल वाले पूरा दिन गलियो में शोर मचा रहे होते है। दिवाली शुरू हो उससे पहले तो ओनलाइन शोपिंग साइट वाले अपना अलग से त्योहार शुरू कर देते है।

मिडल क्लास परिवार बोनस की आशा में अपने गाल लाल रखते हुए त्योहार मनाने का उत्साह और तनाव; दोनों का अनुभव करता है। एकादशी से घर को सजाने संवारने का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। अपने गांव – शहर से दूर रहने वाले कुछ भी कर के घर को पहुंचने की कोशिश में लगे होते है। अपने बजट के अनुसार कपडे, साज –सजावट का सामान, मिठाई, पकवान खरीदा जाता है। रोशनी – पटाखो से माहौल तैयार हो जाता है। अमावस को उजियारे में परिवर्तित करने वाली दिवाली सही मायनों में मन में एक नई आशा जगाती हैं कि भले ही कितनी मुश्किलें क्यों न हो; तुम अपने प्रयत्नो से, हिम्मत से अपने आसपास नई रोशनी जगा दे।

इस बार कोरोना है तो कुछ कुछ मुश्केलियां आ सकती है। हर कोई अपने गांव  - शहर ना जा पाए तो जी छोटा ना करे, हम जहां है वहीं दिवाली उल्लासपूर्वक मनाएं। पटाखें जला न पाएं तो डीजे के ताल पर झूमीए। मिठाई ना मिले तो घर पर ही हलवा, खीर बनाए।

कोरोना की वजह से बाजार में मंदी रह सकती है, तो आप अपने बजट अनुसार थोडा खर्च (ओनलाइन शोपिंग टाल सके तो टालिए) कर के किसी की दिवाली बेहतर बना सकते है। मिट्टी के दिए जलाएं, रंगोली बनाइए, मुस्कान बिखेरीए। बच्चों को भी थोडा खुश करिए, भले थोडी ही सही पर मिठाई – पकवान खिलाईए। हां, स्वास्थ्य के प्रति जागॄक रहीए।

दिवाली में सभी को शामिल करे। जो नहीं मना पा रहे उसे भी शामिल करने का प्रयत्न करे। Show-Off ना करें।

आप के आसपास किसी ने अपने स्वजन गंवाए हो तो आप उनकी भावना को ठेस ना पहुंचे उसका भी ख्याल रखे। कोरोना अभी गया नहीं है ये ध्यान में रखिएगा। त्योहार मनाना है, हमें बहकना नहीं है।

ये साल हमें बहुत कुछ सीख दे रहा है। हमें अपने आप के साथ संघर्ष करना है। हमें अपने आप को मजबूत बनाना है। सकारात्मक सोच के साथ आगे बढना है।

एक गाने की पंक्तियां याद आ रही है;

“ग़म का बादल जो छाए, तो हम मुस्कराते रहें,

अपनी आँखों में आशाओं के दीप जलाते रहें,

आज बिगड़े तो कल फिर बने, आज रूठे तो कल फिर मने,

वक़्त भी जैसे इक मीत है.

ज़िन्दगी की यही रीत है,

हार के बाद ही जीत है।“

 

इस दिवाली की शुभकामना देते हुए ये कहना चाहूंगा की

-      -  कोरोना जैसी महामारी में जिनके पास जमापूंजी (सेवींग्स) थी वो डगमगाये नहीं। सेवींग्स का महत्व समजिए।

-       - हेल्थ इन्स्योरन्स ना हो तो तुरंत लीजिए।

-       - अपने परिवार के भविष्य का केल्क्युलेशन कर उस हिसाब से लाइफ इन्स्योरन्स भी जरूर करवाए।

 

आप उल्लास के साथ, उत्साह के साथ दिवाली मनाएं;  खुश रहे और खुशीयां बांटे। आप सभी को एक बार फिर से दिवाली की ढेर सारी शुभकामनाएं। (मेरे गुजराती स्नेहीजन को नूतन वर्षाभिनंदन!)

-       ~ गोपाल खेताणी का नमस्कार।

 

 


Thursday, 23 July 2020

मेरा भारत महान – चन्द्रशेखर सीताराम तिवारी


'दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे।' आज उस महान सेनानी की जन्म जयंती है जिन्होंने महज १५ साल की उमर में काशी में पकड़े जाने के बाद मजिस्ट्रेट खरेघाट पारसी के सामने पेश किए जाने पर सीना तान कर अपना परिचय दीया;
नाम- आजाद, माता- का नाम धरती, पिता का नाम- स्वतंत्रता और पता जेल
महज 12 साल की उम्र में संस्कृत का विद्वान बनने के लिए काशी आए चंद्रशेखर तिवारी क्रांतिकारी बन गए और देश का परिचय हुआ आजाद से. चंद्रशेखर को काशी के ज्ञानवापी में आजाद नाम मिला था, जब वे शिवपुर की सेंट्रल जेल से छूटकर आए थे
युवा होने पर आजाद 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी' से जुड़े।रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए। 17 दिसंबर, 1928 को चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और ज्यों ही जे.पी. साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी, जो साण्डर्स के माथे पर लग गई वह मोटरसाइकिल से नीचे गिर पड़ा। फिर भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4-6 गोलियां दाग कर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब साण्डर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया। इतना ना ही नहीं लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था- लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है। उनके इस कदम को समस्त भारत के क्रांतिकारियों खूब सराहा गया। साण्डर्स-वध और दिल्ली एसेम्बली बम काण्ड में फाँसी की सजा पाये तीन अभियुक्तों- भगत सिंहराजगुरु  सुखदेव ने अपील करने से साफ मना कर ही दिया था। अन्य सजायाफ्ता अभियुक्तों में से सिर्फ ने ही प्रिवी कौन्सिल में अपील की। ११ फ़रवरी १९३१ को लन्दन की प्रिवी कौन्सिल में अपील की सुनवाई हुई। इन अभियुक्तों की ओर से एडवोकेट प्रिन्ट ने बहस की अनुमति माँगी थी किन्तु उन्हें अनुमति नहीं मिली और बहस सुने बिना ही अपील खारिज कर दी गयी। चन्द्रशेखर आज़ाद ने मृत्यु दण्ड पाये तीनों प्रमुख क्रान्तिकारियों की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया।

२० फरवरी को जवाहरलाल नेहरू से उनके निवास आनन्द भवन में भेंट की। आजाद ने पण्डित नेहरू से यह आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फाँसी को उम्र- कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें! अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से मन्त्रणा कर ही रहे थे तभी सी०आई०डी० का एस०एस०पी० नॉट बाबर जीप से वहाँ पहुँचा। उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में कर्नलगंज थाने से पुलिस भी गयी। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी में आजाद को वीरगति प्राप्त हुई। यह दुखद घटना २७ फ़रवरी १९३१ के दिन घटित हुई और हमेशा के लिये इतिहास में दर्ज हो गयी।

पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिये चन्द्रशेखर आज़ाद का अन्तिम संस्कार कर दिया था। जैसे ही आजाद की बलिदान की खबर जनता को लगी सारा इलाहाबाद अलफ्रेड पार्क में उमड पडा। जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए थे लोग उस वृक्ष की पूजा करने लगे। वृक्ष के तने के इर्द-गिर्द झण्डियाँ बाँध दी गयीं। लोग उस स्थान की माटी को कपडों में शीशियों में भरकर ले जाने लगे। समूचे शहर में आजाद के बलिदान की खबर से जबरदस्त तनाव हो गया। शाम होते-होते सरकारी प्रतिष्ठानों हमले होने लगे। लोग सडकों पर गये थे।

चंद्रशेखर आजाद (पंडीतजी) भारत माता के वीर सपूत थे, वीर सपूत हैं और देश भक्तों के दील में आगे भी जींदा रहेंगे। उनकी जन्म जयंती पर शत  शत नमन।

मेरा भारत महान – केशव गंगाधर तिलक


“स्वराज मेरा जन्म सिध्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा।“
"स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच।“

आप समज ही गये होंगे की हम बात कर रहे है “लोकमान्य” तिलकजी की जीनकी आज जन्म जयंती है। उनके द्वारा चलाया जाने वाला मराठी दैनिक “केसरी”ने कई दिलो में आझादी की चिंगारी जलायी थी। महाराष्ट्र के रत्नागीरी जिल्ले में जन्म लेने वाले केशव गंगाधर तिलक “बाल” गंगाधर तिलक एवम्‍ “लोकमान्य” तिलक से प्रसिध्ध हुए।

बाल गंगाधर तिलक ने एनी बेसेंट जी की मदद से होम रुल लीग की स्थापना की |होम रूल आन्दोलन के दौरान  बाल गंगाधर तिलक को काफी प्रसिद्धी मिली, जिस कारण उन्हेंलोकमान्यकी उपाधि मिली थी। अप्रैल 1916 में उन्होंने होम रूल लीग की स्थापना की थी। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य भारत में स्वराज स्थापित करना था।

लोकमान्य तिलक ने जनजागृति का कार्यक्रम पूरा करने के लिए महाराष्ट्र में गणेश उत्सव तथा शिवाजी उत्सव सप्ताह भर मनाना प्रारंभ किया।  इन त्योहारों के माध्यम से जनता में देशप्रेम और अंगरेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस भरा गया।

तिलक के क्रांतिकारी कदमों से अंगरेज बौखला गए और उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाकर छ: साल के लिए 'देश निकाला' का दंड दिया और बर्मा की मांडले जेल भेज दिया गया।

इस अवधि में तिलक ने गीता का अध्ययन किया और गीता रहस्य नामक भाष्य भी लिखा। तिलक के जेल से छूटने के बाद जब उनका गीता रहस्य प्रकाशित हुआ तो उसका प्रचार-प्रसार आंधी-तूफान की तरह बढ़ा और जनमानस उससे अत्यधिक आंदोलित हुआ।

उनकी लिखी हुई सभी पुस्तकों का विवरण इस प्रकार है।
·        ' ओरिओन' (The Orion)
·        द आर्कटिक होम ऑफ द वेदाज (The Arctic Home in the Vedas, (1903))
·        श्रीमद्भगवद्गीता रहस्य (माण्डले जेल में)
·        The Hindu philosophy of life, ethics and religion (१८८७ में प्रकाशित).
·        Vedic Chronology & Vedang Jyotish (वेदों का काल और वेदांग ज्योतिष)
·        टिळक पंचांग पद्धती (इसका कुछ स्थानों पर उपयोग होता है, विशेषतः कोकण, पश्चिम महाराष्ट्र आदि)
·        श्यामजी कृष्ण वर्मा एवं अन्य को लिखे लोकमान्य तिलक के पत्र (एम. डी. विद्वांस यांनी संपादित)
·        Selected documents of Lokamanya Bal Gangadhar Tilak, 1880-1920, (रवीन्द्र कुमार द्वारा संपादित)
तिलक जी की वजह से कई स्वातंत्र्य सेनानी भारत वर्ष को मिले जिसमें से एक थे वीर सावरकर। लोकमान्य तिलकजीने भारत वर्ष को अपना जिवन समर्पित किया था। भारत माता के इस वीर सपूत को उनके जन्मदिन पर शत शत नमन।

परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद

अब्दुल हमीद   का जन्म  1 जुलाई , 1933 को   यूपी के गाजीपुर जिले के धरमपुर गांव में   हुआ था।   उनके पिता मोहम्मद उस्मान सिलाई का काम करते थे...