पुस्तक परिचयः
अग्नि की ऊड़ान
लेखकः भारत
के अब तक सर्वाधीक चहीते राष्ट्रपति एवम् मिसाइल मेन श्री ए.पी.जे अब्दुल कलाम (लेखन
सहयोगः अरुण कुमार तिवारी)
WINGS OF
FIRE का हिन्दी अनुवाद आर्येंद्र उपाध्याय
लिडर वो है जो निष्फलता अपने कंधो पे लेता है, और सफलता अपनी टिम
के सभ्यो में बांट देता है ये हमें कलाम जी के आचरण से शिखना चाहिए।
ए.पी.जे अब्दुल
कलाम ऐसी विराट प्रतिभा है की अगर वे जब लिखे तो हर एक शब्द हमारे मन मस्तिष्क में
अंकित हो जाए। कलामजीने अपने बचपन से लेकर जब वो ६०
साल के हुए तब तक के अपने जिवन सफर का दर्शन इस पुस्तक के माध्यम से करवाया है।
कलाम जी का
जन्म आर्थिक रुप से साधारण लेकन आध्यात्मिक विचारो से असाधारण परिवार में रामेश्वरम
में हुआ था। कलामजी अपने पिता और उनके विचारो से प्रभावीत थे। और क्युं ना हो, पुस्तक
में कलामजी के पिताजी, जो अपने सुंदर विचार बालक कलाम को सुनाते है वो हमें भी प्रभावित
करते है।
जैसे की
“जब संकट या
दुःख आए तो उनका कारण जानने की कोशीश करो। विपत्ती हमेशा आत्मविश्लेषण के अवसर प्रदान
करती है।“
कलामजी और उनके
बहनोइ जलालुदीन, जो उनसे उम्र में काफी बडे थे वो उनके अच्छे मित्र बने, जब घूमने निकलते
थे तो शिवमंदीर की प्रदक्षीणा भी करते थे। धर्मनिरपेक्षता का इससे बडा उदाहरण क्या
होगा?
जलालुदीनने
ही कलामजी को पढने के लिए प्रोत्साहीत किया।
दूसरे प्रोत्साहक
थे कलामजी के चचेरे भाई शम्शुदीन जो न्यूझ पेपर एजंसी चलाते थे, जिनके साथ बचपन में
कलामजी ने काम किया। कलाम जी की मां और दादी बच्चों को रामायण एवम् पैगंबर साहब की
कहानिया सुनाती थी इसका असर थी कलामजी के जिवन पे पडा है।
विग्यान के
उनके शिक्षक जो शिव सुब्रह्मण्य अय्यर जो एक सनातनी ब्राह्मण थे उन्होंने कलामजी को
खाने पे बुलाया और उनके साथ खाना खाया, ये बात का भी बाल कलाम के मन पे आजिवन असर रहा।
रामेश्वरम से
बाद में कलाम जी रामनाथपुरम पढने गये। और फिर वहां से त्रीची। यहां पर कलामजी को भौतिकशास्रमें
रूची होने लगी। पर तुंरत ही कलामजी को ग्यान हुआ को उन्हें इंजिनियरींग में जान चाहिये
था। MIT में एडमिशन तो मिला लेकिन फिस के लिए पैसे नहीं थी तब कलाम जी की बहनने अपने
गहने बेच दिये और उन पैसो से कलामजी फिस दे पाए।
यहां पर कलाम
जी ने रसप्रद शब्दो में अपने बचपन, कोलेज काल और तकनिकी ग्यान का वर्णन किया है। कोलेज
के बाद कलामजी ने HAL जोइन किया और एक इंन्टर्व्यु के तहत दिल्ही और देहरादून गये।
वहां से रुषीकेश गये और स्वामी शिवानंद से मिले। वह प्रसंग़ अद्भूत है। आगे कलामजी ने
अपने काम, अपने जिवने के सफर, तकनीकी ज्ञान का विवरण दिया है पर साथ साथ कलामज की आध्यात्मिक
विचार का आलेखन जो हुआ है वो हमारे दिल को छू जाता है।
होवर क्राफ्ट
के अनुभवो से होते हुए कलामजी कैसे डो. साराभाइ से मिलते है वह विवरण सभी के लिए मार्गदर्शक
है।
दुर्भाग्यवश
हमारे देश में सिर्फ “हिरो” और “झिरो” है, जिनके बिच एक बडी विकट विभाजन रेखा है।इस
स्थिति को बदलना जरूरी है ऐसा कलामजी का मानना था जब भारत की आबादी ९५ करोड थी।
नासा से आने के बाद कैसे रोकेट, उपग्रह और मिसाइल तकनिक पे काम
हुआ वो आसान शब्दो में कलामजी ने समजाय है।साथ में अपने अनुभव को साझा करते हुए कइ
सिख भी प्रदान की है।
एस एल वी कि
प्राथमिक निष्फलता, संघर्ष इन सभी अनुभवो को कलामजीने साझा किया है वैसी मुसिबते या
इससे कम मुसीबते हमारे जिवन में आती है तब हमें कैसे लडना है वो कलामजी के शब्दो से
हमें पता चलता है।
एस एल वी के
बाद प्रुथ्वी, त्रीशुल, अग्नि मिसाइल के संशोधन और सफलता के विवरण के साथ कलामजी आध्यात्मिक
विवरण भी आप को किताब पढने में विवश कर देता है।
विज्ञान में
थोडी भी रूची रखने वाले पाठक इस पुस्तक को बडे चाव से पढेंगे ये मेरा मानना है।
वैसे भी सब
से चहिते राष्ट्रपति के इस आत्मकथानक समान पुस्तक को कौन पढना नहीं चाहेगा?
~ गोपाल खेताणी
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