Thursday, 23 July 2020

मेरा भारत महान – चन्द्रशेखर सीताराम तिवारी


'दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे।' आज उस महान सेनानी की जन्म जयंती है जिन्होंने महज १५ साल की उमर में काशी में पकड़े जाने के बाद मजिस्ट्रेट खरेघाट पारसी के सामने पेश किए जाने पर सीना तान कर अपना परिचय दीया;
नाम- आजाद, माता- का नाम धरती, पिता का नाम- स्वतंत्रता और पता जेल
महज 12 साल की उम्र में संस्कृत का विद्वान बनने के लिए काशी आए चंद्रशेखर तिवारी क्रांतिकारी बन गए और देश का परिचय हुआ आजाद से. चंद्रशेखर को काशी के ज्ञानवापी में आजाद नाम मिला था, जब वे शिवपुर की सेंट्रल जेल से छूटकर आए थे
युवा होने पर आजाद 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी' से जुड़े।रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए। 17 दिसंबर, 1928 को चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और ज्यों ही जे.पी. साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी, जो साण्डर्स के माथे पर लग गई वह मोटरसाइकिल से नीचे गिर पड़ा। फिर भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4-6 गोलियां दाग कर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब साण्डर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया। इतना ना ही नहीं लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था- लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है। उनके इस कदम को समस्त भारत के क्रांतिकारियों खूब सराहा गया। साण्डर्स-वध और दिल्ली एसेम्बली बम काण्ड में फाँसी की सजा पाये तीन अभियुक्तों- भगत सिंहराजगुरु  सुखदेव ने अपील करने से साफ मना कर ही दिया था। अन्य सजायाफ्ता अभियुक्तों में से सिर्फ ने ही प्रिवी कौन्सिल में अपील की। ११ फ़रवरी १९३१ को लन्दन की प्रिवी कौन्सिल में अपील की सुनवाई हुई। इन अभियुक्तों की ओर से एडवोकेट प्रिन्ट ने बहस की अनुमति माँगी थी किन्तु उन्हें अनुमति नहीं मिली और बहस सुने बिना ही अपील खारिज कर दी गयी। चन्द्रशेखर आज़ाद ने मृत्यु दण्ड पाये तीनों प्रमुख क्रान्तिकारियों की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया।

२० फरवरी को जवाहरलाल नेहरू से उनके निवास आनन्द भवन में भेंट की। आजाद ने पण्डित नेहरू से यह आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फाँसी को उम्र- कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें! अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से मन्त्रणा कर ही रहे थे तभी सी०आई०डी० का एस०एस०पी० नॉट बाबर जीप से वहाँ पहुँचा। उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में कर्नलगंज थाने से पुलिस भी गयी। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी में आजाद को वीरगति प्राप्त हुई। यह दुखद घटना २७ फ़रवरी १९३१ के दिन घटित हुई और हमेशा के लिये इतिहास में दर्ज हो गयी।

पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिये चन्द्रशेखर आज़ाद का अन्तिम संस्कार कर दिया था। जैसे ही आजाद की बलिदान की खबर जनता को लगी सारा इलाहाबाद अलफ्रेड पार्क में उमड पडा। जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए थे लोग उस वृक्ष की पूजा करने लगे। वृक्ष के तने के इर्द-गिर्द झण्डियाँ बाँध दी गयीं। लोग उस स्थान की माटी को कपडों में शीशियों में भरकर ले जाने लगे। समूचे शहर में आजाद के बलिदान की खबर से जबरदस्त तनाव हो गया। शाम होते-होते सरकारी प्रतिष्ठानों हमले होने लगे। लोग सडकों पर गये थे।

चंद्रशेखर आजाद (पंडीतजी) भारत माता के वीर सपूत थे, वीर सपूत हैं और देश भक्तों के दील में आगे भी जींदा रहेंगे। उनकी जन्म जयंती पर शत  शत नमन।

मेरा भारत महान – केशव गंगाधर तिलक


“स्वराज मेरा जन्म सिध्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा।“
"स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच।“

आप समज ही गये होंगे की हम बात कर रहे है “लोकमान्य” तिलकजी की जीनकी आज जन्म जयंती है। उनके द्वारा चलाया जाने वाला मराठी दैनिक “केसरी”ने कई दिलो में आझादी की चिंगारी जलायी थी। महाराष्ट्र के रत्नागीरी जिल्ले में जन्म लेने वाले केशव गंगाधर तिलक “बाल” गंगाधर तिलक एवम्‍ “लोकमान्य” तिलक से प्रसिध्ध हुए।

बाल गंगाधर तिलक ने एनी बेसेंट जी की मदद से होम रुल लीग की स्थापना की |होम रूल आन्दोलन के दौरान  बाल गंगाधर तिलक को काफी प्रसिद्धी मिली, जिस कारण उन्हेंलोकमान्यकी उपाधि मिली थी। अप्रैल 1916 में उन्होंने होम रूल लीग की स्थापना की थी। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य भारत में स्वराज स्थापित करना था।

लोकमान्य तिलक ने जनजागृति का कार्यक्रम पूरा करने के लिए महाराष्ट्र में गणेश उत्सव तथा शिवाजी उत्सव सप्ताह भर मनाना प्रारंभ किया।  इन त्योहारों के माध्यम से जनता में देशप्रेम और अंगरेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस भरा गया।

तिलक के क्रांतिकारी कदमों से अंगरेज बौखला गए और उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाकर छ: साल के लिए 'देश निकाला' का दंड दिया और बर्मा की मांडले जेल भेज दिया गया।

इस अवधि में तिलक ने गीता का अध्ययन किया और गीता रहस्य नामक भाष्य भी लिखा। तिलक के जेल से छूटने के बाद जब उनका गीता रहस्य प्रकाशित हुआ तो उसका प्रचार-प्रसार आंधी-तूफान की तरह बढ़ा और जनमानस उससे अत्यधिक आंदोलित हुआ।

उनकी लिखी हुई सभी पुस्तकों का विवरण इस प्रकार है।
·        ' ओरिओन' (The Orion)
·        द आर्कटिक होम ऑफ द वेदाज (The Arctic Home in the Vedas, (1903))
·        श्रीमद्भगवद्गीता रहस्य (माण्डले जेल में)
·        The Hindu philosophy of life, ethics and religion (१८८७ में प्रकाशित).
·        Vedic Chronology & Vedang Jyotish (वेदों का काल और वेदांग ज्योतिष)
·        टिळक पंचांग पद्धती (इसका कुछ स्थानों पर उपयोग होता है, विशेषतः कोकण, पश्चिम महाराष्ट्र आदि)
·        श्यामजी कृष्ण वर्मा एवं अन्य को लिखे लोकमान्य तिलक के पत्र (एम. डी. विद्वांस यांनी संपादित)
·        Selected documents of Lokamanya Bal Gangadhar Tilak, 1880-1920, (रवीन्द्र कुमार द्वारा संपादित)
तिलक जी की वजह से कई स्वातंत्र्य सेनानी भारत वर्ष को मिले जिसमें से एक थे वीर सावरकर। लोकमान्य तिलकजीने भारत वर्ष को अपना जिवन समर्पित किया था। भारत माता के इस वीर सपूत को उनके जन्मदिन पर शत शत नमन।

Sunday, 19 July 2020

शिक्षक - समाज का सूत्रधार। - श्री सांइराम दवेजी एवम्‌ श्री डी.वी. महेताजी



शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उस की गोद में पलते है। इसी विचारधारा पे आज संवाद हुआ जिनियस ग़्रुप के फाउंडर और चैरमेन श्री डी.वी महेताजी और गुजरात के जानेमाने वक्ता, हास्यकार और सांदीपनी विचारधारा के शिक्षक श्री सांईराम दवेजी के बिच।
युं तो ये संवाद गुजराती में है और इस लेख के अंत में आप को लिंक भी मिल जाएगी, पर जो गुजराती नहीं समज पा रहे है उनके लिए प्रस्तुत है संवाद के अंश।
ये अंश दो विभाग में प्रस्तुत कर रहा हूं।
   शिक्षकों के लिए
·        शिक्षक मन से भी होना आवश्यक है। जो व्यवसाय के लिए आए हैं उन्हे मन से शिक्षक होना पडेगा।
·        शिक्षक २४ घंटे और आजिवन शिक्षक ही रहता है।
·        बच्चों को अंकुश में रखना नहीं पर उसे सही दिशा में ले जाना है शिक्षक का कार्य। डस्टर या छडी की आवाज से अगर बच्चे डरते है तो समजीए के  शिक्षक की इमेज बौनी हो गइ।
·        शिक्षक को अपने विषय के प्रति जाग़्रुक रहना चाहिए और निरंतर अपना नोलेज बढाते रहना चाहिए।
·        याद रहे, समाज का सिस्टम अभी आप के हाथ निचे फल फूल रहा है।
·        बच्चों की सुषुप्त शक्तियों को जाने, उनको जिस सबजेक्ट के प्रति ज्यादा आकर्षण हो उन्हें समजे और उसे उस दिशा में प्रेरित करे।
·        इमेजिनेशन और इनोवेशन के लिए माहौल पैदा किजिए।
·        रट्टा ग्यान के बदले विषय को समजने के तरिके के बारे में बच्चों को समजाये।
·        हर  १०-२० साल में बिझनेस और नौकरी के फिल्ड बदल रहे हैं या नये आ रहे हैं, बच्चों को इस प्रकार से तैयार करे की आने वाले समय के लिए वो सक्षम हो।

बच्चों के अभिभावको के लिए
·        आप के बच्चे संभालने के लिए शिक्षक कार्यशिल नहीं है पर वो आप के बच्चों के साथ अन्य बच्चों का भी भवीष्य संवार रहे है। अतः शिक्षको का सम्मान किजिए।
·        व्यायाम (गेम्स), संगीत, चित्र या भाषाओं के क्लास तो सिर्फ समय बर्बाद करने के लिए है ये विचारधारा अभिभावको को बदलनी पडेगी।
·        बच्चों के इंटरेस्ट के सबजेक्ट जाने और फिर उसे उस फिल्ड में आगे पढने के लिए भेजे।
·        सायंस स्ट्रीम (इंजिनियर, डोक्टर, एमबीए), कोमर्स स्ट्रीम (सीए, सीएस, मार्केटींग) को ही अग्रीमता दे और लास्ट में ही आर्ट्स को चूने ये फैसला या तो ये विचारधारा बदलनी होगी।
·        मातृभाषा के प्रति जागृक होना पडेगा। अंग्रेजी महत्वपूर्ण है मगर इसका मतलब यह कतह ही नहीं की हम अपनी जडों को काट डाले।
·        फिर से एक बार शिक्षक को उतना ही सम्मान दीजीए जितना आप डोक्टर, आइएएस ओफीसर, सीए इत्यादी प्रोफेशनल को देते हैं क्युंकी उन प्रोफेशनल की करीयर की निंव ये शिक्षक ने हीं रखी थी।
अगर आप गुजराती थोडी बहुत भी समज पाते हैं तो नीचे दी गई लिंक पर जाइए और ये संवाद जरूर से सुनिए।
इसी विचारधारा को लेकर मैं एक जानी मानी बेस्ट सेलर किताब के उपर अपना लेख लेकर फिर से आप के साथ ब्लोग के माध्यम से वापस आऊंगा।

~ गोपाल खेताणी

परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद

अब्दुल हमीद   का जन्म  1 जुलाई , 1933 को   यूपी के गाजीपुर जिले के धरमपुर गांव में   हुआ था।   उनके पिता मोहम्मद उस्मान सिलाई का काम करते थे...