Wednesday, 22 April 2020

प्रुथ्वी दिवस - Earth Day


५०वां प्रुथ्वी दिवस

माता भूमि पुत्रोहं पृथिव्या ।
पृथ्वी मेरी माता है और मैंं उसका पुत्र हुंं  ।

हम इस धरा को माता मानते है। किसान हल चलाने से पहेले खेत की, धरा की पूजा करते है। बिल्डर नइ इमारत बनाने से पहले भूमी पूजन करते है। अरे यहां तक की उद्योगपति भी नया युनिट लगाने से पहले भी धरती मा का पूजन करते है।
चलो, हम मानते तो है इस पावन धरती को, पूजन भी करते है लेकिन बाद में हम जाने अन्जाने में इस धरा को को मलिन कर रहे हैं, प्रदूषित कर रहे है। कैसे ?
ऐसे
पैड काट के > रेगिस्तान तभी तो बढ रहे है।
केमिकल / इंडस्ट्रीयल वेस्ट > सीर्फ नदीयों को ही नहीं, हम तो इस जमीन को भी नहीं छोड रहे।
रेत / खनिज के लिए खनन > इलिगल तरीको से रेत निकालना, खनिज के लिए भूतल को के साथ छेडखानी।
क्रीषि की जमीन को बेचना  > किसान अपनी क्रीषि के लिए उपयुकत जमीन को बेच रहे है या इन्डस्ट्रीआलिस्ट उसे हथियाने के लिए जोर जबरदस्ती कर रहे है।
पानी / बोरवेल > पानी के लिए इतने सारे बोरवेल हम बना रहे है वो भी तो धरा पे अत्याचार ही है।

क्या किया जाये।
- जितना हो सके उतना >> पैड लगाए, पौधे लगाए। पेड पौधे हवा को तो स्वच्छ करेंग़े ही पर जल स्त्रोत भी बढाएंगे और रेगिस्तान को रोकने के लिए भी ये एक मात्र उपाय है।
- औद्योगीक विकास जरुरी है पर जो भी औद्योगीक कचरा निकल रहा है उसके निकाल का सही / मान्य तरिका अपनाएं।
- जल स्त्रोत को प्र्दूषित ना करे।
- रेत और खनिज के इलिगल खनन को रोके।
- हम सभी की प्राथमिक जरूरत अन्न है। क्रीषि की जमीन का औद्योगीकी करण बंध करे। नजदीकी फायदे में हम दूर का घाटा नहीं देख पा रहे।
- पानी के बिना हम रह नहीं सकते। पानी को जितना हो सके उतना बचाये।

यस्यां समुद्र उत सिन्धुरापो यस्यामन्नं कृष्टयः संबभूवुः ।
यस्यामिदं जिन्वति प्राणदेजत्सा नो भूमिः पूर्वपेये दधातु ॥


समुद्र एवम नदियों का जल जिसकी गोद में बह रहा है, जिस पर खेती करने से अन्न प्राप्त होता है, जिस पर सभी जीवन जीवित है, ऐसी माता पृथ्वी हमें जीवन का अमृत प्रदान करे।

साभार - भूमी सूक्तम

~ गोपाल खेताणी


Saturday, 18 April 2020

मेरा भारत महान – तात्या टोपे


१८५७ का स्वतंत्रता संग्राम ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारतीयों द्वारा किया गया प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम था। यह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में दो वर्षों तक चला। जनवरी १८५७ तक इसने एक बड़ा रूप ले लिया। विद्रोह का अन्त भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन की समाप्ति के साथ हुआ।

रामचंद्र पाण्डुरंग राव जिन्हे हम ‘तात्या टोपे’ के नाम से जानते हैं और जिन्हें “महाराष्ट्र के बाघ” का बिरुद भी मिला है उनका आज (कथित तौर पे) बलिदान दिवस है।

छत्रपति शिवाजी के उत्तराधिकारी पेशवाओं ने उनकी विरासत को बड़ी सावधानी से सँभाला। अंग्रेजों ने उनका प्रभुत्व समाप्त कर पेशवा बाजीराव द्वितीय को आठ लाख वार्षिक पेंशन देकर कानपुर के पास बिठूर में नजरबन्द कर दिया। तात्याजी के पिता भी येवला से बिठुर आ गये थे। रामचंद्र जिन्हे प्यार से लोग तात्या बुलाते थे उनका जन्म का साल १८१४ माना जाता है। तात्याजी अपने आठ भाइ बहनो में सब से बडे थे।

तात्या को बाजिराव द्वीतिय से एक ‘टोपी’ मिली थी जो वो बडे चाव से पहनते थे। लोग इसी लिए उन्हें तात्या टोपे बुलाते थे। कइ लोगों का मानना है कि शुरुआती दौर में तात्याजी का तोपखाने में काम करने की वजह से उनका नाम तात्या टोपे हुआ।

बाजीरावजी के म्रुत्यु के पश्चात तात्याजीने नानासाहेब पेश्वा, रानी लक्ष्मीबाइ और अनेक सेनानीओ के साथ काम किया। तात्याजी टोपे को उस समय का उतक्रुष्ट सेनापती माना जाता है। महाराणा प्रताप के भांती वो उत्तर भारत, पश्चिमी भारत और मध्य भारत में अंग्रेजो से लोहा लेते रहे। अंग्रेज उन्हें जागते हुए तो पकड नहीं पाइ। तब परोन के जंगल में तात्या टोपे के साथ विश्वासघात हुआ। नरवर का राजा मानसिंह अंग्रेज़ों से मिल गया और उसकी गद्दारी के कारण तात्या टोपे ८ अप्रैल, १८५९ ई. को सोते समय में पकड़ लिए गये।

ग्वालियर (म.प्र.) के पास शिवपुरी के न्यायालय में एक नाटक रचा गया, जिसका परिणाम पहले से ही निश्चित था। सरकारी पक्ष ने जब उन्हें गद्दार कहा, तो तात्या टोपे ने उच्च स्वर में कहा, ''मैं कभी अंग्रेजों की प्रजा या नौकर नहीं रहा, तो मैं गद्दार कैसे हुआ ? मैं पेशवाओं का सेवक रहा हूँ। जब उन्होंने युद्ध छेड़ा, तो मैंने एक पक्के सेवक की तरह उनका साथ दिया। मुझे अंग्रेजों के न्याय में विश्वास नहीं है। या तो मुझे छोड़ दें या फिर युद्ध बन्दी की तरह तोप से उड़ा दें|

१८ अप्रैल को शाम पाँच बजे तात्या को अंग्रेज कंपनी की सुरक्षा में बाहर लाया गया और हजारों लोगों की उपस्थिति में खुले मैदान में फाँसी पर लटका दिया गया। कहते हैं तात्या फाँसी के चबूतरे पर दृढ कदमों से ऊपर चढे और फाँसी के फंदे में स्वयं अपना गला डाल दिया। इस प्रकार तात्या मध्यप्रदेश की मिट्टी का अंग बन गये।

कहा जाता है की राजा मानसिंह ने तांत्या टोपे के साथ कभी भी विश्वासघात नहीं दिया और न ही उन्हें अंग्रेजों द्वारा कभी जागीर दी गई थी।

असली तात्या टोपे तो छद्मावेश में शत्रुओं से बचते हुए स्वतन्त्रता संग्राम के कई वर्ष बाद तक जीवित रहे। ऐसा कहा जाता है कि १८६२ - १८८२ ई. की अवधि में स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी तात्या टोपे 'नारायण स्वामी' के रूप में गोकुलपुर, आगरा में स्थित सोमेश्वरनाथ के मन्दिर में कई महिने रहे थे।

इतिहासकार श्रीनिवास बालासाहब हर्डीकर की पुस्तक 'तात्या टोपे' के अनुसार तात्या १८६१ में काशी के खर्डेकर परिवार में अपनी चचेरी बहिन दुर्गाबाई के विवाह में आये थे तथा १८६२ में अपने पिता के काशी में हुए अंतिम संस्कार में भी उपस्थित थे।

उनके एक वंशज ने दावा किया है कि वे १ जनवरी, १८५९ को लड़ते हुए शहीद हुए थे। किताब 'टोपेज़ ऑपरेशन रेड लोटस' के लेखक पराग टोपे जो तात्याजी टोपे के वंशज है उनके अनुसार- "शिवपुरी में १८ अप्रैल, १८५९ को तात्या को फ़ाँसी नहीं दी गयी थी, बल्कि गुना ज़िले में छीपा बड़ौद के पास अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए १ जनवरी, १८५९ को तात्या टोपे शहीद हो गए थे।" पराग टोपे के अनुसार- "इसके बारे में अंग्रेज़ मेजर पैज़ेट की पत्नी लियोपोल्ड पैजेट की किताब 'ऐंड कंटोनमेंट : ए जनरल ऑफ़ लाइफ़ इन इंडिया इन १८५७-१८५९' के परिशिष्ट में तात्या टोपे के कपड़े और सफ़ेद घोड़े आदि का जिक्र किया गया है और कहा कि "हमें रिपोर्ट मिली की तात्या टोपे मारे गए।"

अनेक ब्रिटिश अधिकारियों के पत्रों में यह लिखा है कि कथित फांसी के बाद भी वे रामसिंह, जीलसिंह, रावसिंह जैसे नामों से घूमते मिले हैं। स्पष्ट है कि इस बारे में अभी बहुत शोध की आवश्यकता है|

लेकिन जो भी हो “तात्या टोपे” के नाम से ब्रिटीश सेना थर थर कांपती थी वो एक हकिकत थी जो इतिहास के पन्नो में अंकित हो चूकी है।

तात्याजी टोपे को देशवासीओ की और से शत शत नमन।

~ गोपाल खेताणी

Monday, 13 April 2020

मन में है विश्वास – शैलेष सगपरिया




मन में है विश्वास – शैलेष सगपरिया

नमस्कार मित्रों। आशा है आप सकुशल होंगे और लोकडाउन के नियमों का पालन कर रहें होंगे। लोकडाउन के इस समय में कई लोग, कइ संस्थाए बहुत अच्छे काम कर रही है। ऐसी ही दो एज्युकेशनल इंस्टीट्युट ने कल १२ अप्रेल को फेसबूक पे लाइव वक्तव्य का आयोजन कीया।

Genius English Medium School और Jay International School  राजकोट, गुजरात द्वारा आयोजीत इस वक्तव्य को बहुत ही अच्छा प्रतिसाद मिला। वक्ता थे, राजकोट और गुजरात के प्रसीद्ध वार्ताकार, वक्ता एवम सरकारी अफसर श्री शैलेष सगपरिया। चूंकी ये पूरा वक्तव्य गुजराती में था आप को इस वक्तव्य के चुनींदा अंश इस लेख में बताउंगा। 

उन्होंने ना सीर्फ कोरोना संकट में लोकडाउन के समय क्या करना चाहिये ये बताया पर उसके बाद भी क्या करना चाहिये ये भी बताया, जो हमारे सुखमय जिवन के लिए लाभदायी रहेगा।
लोकडाउन के इस समय में और कोरोना की महामारी से वो ही लोग शांतिपूर्वक जी रहे है जीनके पास पांच स्वास्थ्य है।

              १)        शारीरिक स्वास्थ्य

२)        मानसीक स्वास्थ्य
३)        आर्थीक स्वास्थ्य
४)        सामाजिक स्वास्थ्य
५)       आध्यात्मिक स्वास्थ्य


१)     शारीरिक स्वास्थ्यः
जिनका शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा है उनकी रोगप्रतिकारक शक्ति भी अच्छी है। हमने देखा है की कइ व्रुध्ध व्यक्ति कोरोना का शिकार होने के बावजूद ठीक होकर घर को वापस लौट आए है, क्युंकी उनका शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा था| जो पहेले से ही Blood Pressure, diabetes, किडनी संक्रमण या अन्य बिमारी से ग्रस्त थे वो उबर नहीं पाये।
जिसको तंबाकु, दारु , सिगारेट, बीडी आदी का व्यसन हो इनके लिए लोकडाउन वरदान है की इस  समय वो अपना आत्मबल बढाए और व्यसनमुक्त हो जाए।
आप अपनी फिटनेस पर ध्यान दे और शरीर को चुस्त बनाए। व्यायाम, योग, डांस आदी तरीको से अपने आप को फिट रखे।
जितने दिन ये लोकडाउन चलेगा यकिन मानीए उतने दिन का आयुष्य आप का बढ गया है। क्युंकी इन दिनों आपने जंक फूड खाया नहीं। अपने घर का शुध्ध सात्विक भोजन और अपने मटके का पानी ग्रहण कीया।
अगर यही रीत आप जिवन भर अपनाएं तो आपकी रोग प्रतिकारक शक्ति बढेगी; इसमें कोइ दो राय नहीं।

२)   मानसीक स्वास्थ्यः
डोक्टर बर्नी सिगल जो एक केंसर विशेषज्ञ थे उन्होंने एक बेस्ट सेलींग किताब लिखी - लव, मेडीसीन एंड मिरेकल। उस किताब का एक किस्सा आपको बताउंगा। मि. राइट नाम के जनाब को तिसरे स्टेज का केंसर हुआ। उस समय केंसर की कोई भी दवाइ मौजुद नहीं थी। मि. राइट का उपचार डो. सिगल के अस्पताल में चल रहा था।  मि. राइटने सुना की एक कंपनीने केंसर की दवाइ बनाइ है पर अभी तक उसका टेस्ट या रिझल्ट पता नहीं चला। मि. राइटने डो. सिगल से जिद कर के वो दवाइ मंगवाइ और दवाइ खाना स्टार्ट किया। दो महिनो में मि. राइट केंसर से मुक्त हो गये और स्वस्थ जिवन जिने लगे। एक साल बाद उस दवाइ के बारे में चारो और न्युझ फैली के दवाइ केंसर को ठिक करने में निषफ़ल है, वो कुछ भी नहीं कर सकती। मि. राइट को ये न्यूझ मिली और एक महिने में फिर से वो केंसर ग्रस्त हुए । इस बार डोक्टर उन्हें बचा नहीं पाए।

ये किस्सा हमारे मानसीक स्वास्थ्य से जुडा है। अगर हम हकारात्मक अभीगम नहीं रखते तो उसका असर हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर होता है। जिसका मन स्वस्थ उसका तन स्वस्थ। पूरा दिन हम कोरोना के न्यूझ सुनते रहेंगे तो दिमाग खराब ही होगा। कीसी और जगह पे ध्यान केंद्रीत नहीं होगा। खाने पिने का मन नहीं होगा। स्वभाव चिडचिडा हो जाएगा। 
इस लिए इस समय हम अपना ध्यान अच्छी किताबे पढने, अच्छे कार्यक्रम (रामायण, महाभारत आदी) देखने में, कुछ नया सिखने में, बच्चों एवम परिवार के साथे कुछ इनडोर गेम्स खेलने में व्यतित करे तो हमारे मन को आनंद मिलेगा और हमारा मानसीक स्वास्थ्य बेहतर होगा।

गुजरातीमें मुहूर्त को चोघडीया कहते है। सात मूहुर्त  (चोघडीया) होते है।
लाभ, शुभ, अम्रुत – अच्छे मूहुर्त
चल – तट्स्थ मूहुर्त
उद्वेग, रोग, काल – खराव मुहूर्त

चल याने हम। हम सकारात्मक सोचेंग़े, सकारात्म्क कार्य करेंगे तो हमें लाभ होगा। हमे शुभ अवसर प्रदान होंगे। हमारा जिवन अम्रुतमय बनेगा।

हम नकारात्मक सोचेंगे, नकारात्मक कार्य करेंग़े तो मन में उद्वेग बढेगा। मन में उद्वेग बढेगा तो शरीर रोग ग्रस्त होगा और काल हमारे जिवन को नष्ट करेगा।

अपने मानसीक स्वास्थ्य पर ध्यान दे।

३)   आर्थीक स्वास्थ्यः
इस लोकडाइन के समय में सबसे कम खर्चा हम सबने किया होगा। हमने सिर्फ उन्हीं चिजों पे पैसे खर्च किए जो एक सादा जिवन जिने के लिए आवश्यक है।
पर कइ लोगों को इस समय पैसों की चिंता हो रही होगी जो स्वाभाविक है। अगर आप के एकाउंट में, घर में नकदी नहीं है तो जाहिर सी बात है मुश्किल होगी ही।

पर ये स्थिति क्युं पैदा हुइ? हमारे बडे बुझुर्ग हंमेशा से बचत को महत्व देते थे। अगर हम तिन – चार महिने भी नहीं निकाल पा रहे है तो ये हमारे भविष्य के आयोजन पर सवालिया निशान है।
बचत का महत्व समजिए और अपने बच्चों को अभी से समजाएं।

(लोकडाउन टिप्सः गुजरात में आज भी कइ जगह पूरे साल के गेहुं, चावल, तेल, मसाले रखने की प्रथा है।)

४)   सामाजिक स्वास्थ्यः
सामाजिक स्वास्थ्य याने जिन के रिश्ते अपने घरमें, अपने आस पडोस में, मित्रों के साथ, सगे संबंधीओ के साथ, नोकरी या बिझनेस सर्कल में; मधुर है वो इस लोकडाउन पिरियड को एंजोय कर रहे है। फेसबूक चेलेंज दे रहे है,  पूरी कर रहे है। ओनलाइन मिटींग कर रहे है, गेम्स खेलते है, गाने गाते हैं, लिखते है, सुनते है और खुश रहते है।
जिन्होंने अभी तक सिर्फ अपना समय खुद को ही दिया या फिर नोकरी, बिझनेस को ही दिया उनके लिए ये समय संकट भरा रहा होगा।
आप हमेशा अच्छे सकारात्मक लोगों के साथ रहीए, रिश्ते डेवेलोप करीए। कभी कभी संकट समय में हमारे आसपास के लोग ही हमें काम आएंगे।
एक अच्छा जोक है – हमारे पास ऐसे दोस्त होने चाहिए जिन को हम अपनी मुसीबते बता सके; जो मुसीबत को दूर तो नहीं कर पाएंगे पर ऐसे ऐसे सुझाव बताएंगे की आप को मुसीबत सुझाव से ज्यादा आसान लगेगी।

५)   आध्यात्मिक स्वास्थ्यः
जो लोग स्थितप्रग्य है, जिन्होंने ये स्विकार किया है की अभी चल रहा संकट अस्तित्व का आयोजन है वो अभी लोकडाउन में बेहतर तरीके से निर्वाह कर रहे है। स्रुष्टी के आयोजन का स्विकार करे। हां, ऐसा नहीं के बैठे बैठे सिर्फ देखते रहें, कर्म तो करना पडेगा मगर बावरे ना होकर प्रक्रिती के नियम को समजे। स्रुष्टी अभी नव पल्ल्वीत हो रही है। आप कइ विडीयो देख रहे होंगे की प्रक्रिती कैसे चहक रही है जब मानव घर में बंध है तो!
डो. कलामने अपने किताब में लिखा था की जब ७०० वर्ष पूर्व महामारी हुइ थी और लाखो लोग मारे गए थे उसके बाद स्रुष्टी नव पल्ल्वीत हुइ, और निखर के सामने आइ थी।
***
वाइरस एक परोपजीवी है। जो मानव शरीर में आश्रीत होता है फिर उसी मानव को मार देता है। मानव भी स्रुष्टी के लिए वाइरस है। वो स्रुष्टी का आश्रीत है और उसी को खत्म कर देता है। हम इस प्रक्रिती के साथ छेडछाड ना करे।

अब अंत में इजिप्त की लोककथा सुनते है।
कहा जाता है की मरने के बाद इंसान को परम पिता तिन सवाल पूछते है। अगर तिनो का उत्तर “हां” में मिला तो ही उसे स्वर्ग मिलता है अन्यथा उसे वापस प्रुथ्वी पर जन्म लेना पडता है। वो तिन सवाल है

१ – क्या तुमने जिवन का आनंद लिया?
२ – क्या तुमने अकेले हि जिवन का आनंद लिया या दूसरो को साथ भी अपना सुख साझा कीया?
३ – तुम सबने आनंद लिया इस में प्रक्रिती भी आनंदित थी ना? (मतलब और कोई दुखी नहीं हुए थे ना?)

आशा है आप को श्री शैलेष सगपरियाजी के वकत्वय के आधार पर लिखा हुआ मेरा लेख पसंद आया होगा। मैं श्री श्रीकांत तन्नाजी का आभारी हुं जिनकी वजह से में ये वकत्व्य लाइव देख पाया।

ये विडीयो अभी भी फेसबुक पे आप देख सकते है। जिन्हें गुजराती समज में आती है वे जरूर देखे। ये रही लिंक।


आप का आभारी
गोपाल खेताणी

Monday, 6 April 2020

लॉक डाउन और अवसर




लॉक डाउन और अवसर
सबसे पहले में आपको तमाशा मूवी का वो दृश्य याद करना चाहता हूँ जो ठीक मध्यांतर से पहले आता है जब वेद ( रणबीर कपूर), तारा ( दीपिका पादुकोण) को प्रपोज़ करता है।

तारा : जब से में कोर्सिका से वापस आयी हु ना, it’s like,  it’s like तुम मेरे साथ हो। समझ रहे हो? मुझे तुम्हारा नाम तक नहीं पता। कोई उम्मीद नहीं  है की में तुमसे फिर से मिलूंगी? मगर में तुम्हारे साथ हूँ यह पॉसिबल है? ऐसा फील करना? मुझे पहले मालूम नहीं था।
वेद : और फिर में मिल गया।
तारा : नहीं! मुझे मिला एक प्रोडक्ट मैनेजर जो एक शहर में रहता है, जो बहोत वेल behaved है, पोलाइट है, Decent है।
वेद : तो, तारा तो में हु एक प्रोडक्ट मैनेजर; में रहता हु एक शहर में में वो डॉन थोड़ी हु तारा, वो तो एक्टिंग थी ना वो में एक रोल प्ले कर रहा था; और यह में रियल में हूँ
तारा ; नहीं..।
वेद : नहीं का क्या मतलब?
तारा : तुम रियल में डॉन हो और इंटरपोल के अफसर और यहां तुम एक्टिंग कर रहे हो यह तुम रोल प्ले कर रहे हो, एक रेगुलर आदमी का रोल जो एक सेट पैटर्न पर चलता है, जो बगैर सोचे हुवे हर काम ऐसे ही करता है जैसे उसे करना चाहिए यह तुम नहीं हो वेद यह सब नकली है तुम तो नदी में मुँह दाल के पानी पीते हो यार, जानवर की तरह तुम तो पहाड़ो से बाते करते हो तुम वो हो वेद क्या हो गया है तुमको?

कोरोना वायरस से जो लॉक डाउन हुआ है, उससे  हम सब को एक सुवर्ण तक मिली हैउसने हमको एक ऐसे इंसान से मिलने का मौका दिया है जो था तो हमारे साथ लेकिन कभी हमने उसे महत्व दिया ही नहीं वो इंसान और कोई नहीं हम खुद है रोजींदी ज़िन्दगी में हम इतने उलझ गए थे की किसीको खुद के लिए वक़्त ही नहीं था हम सब में एक वेद है जो अलग अलग रोल प्ले करता रहता है जब की अंदर अंदर ही कोई जगह पे घुटन महसूस करता होगा हर एक इंसान में कोई एक बात तो होगी जो औरो से उसको अलग करती होगी लॉक डाउन में आपको यही चीज़ ढूंढनी है अपनी रुकी हुई सी ज़िन्दगी में फिर से आशा की ज्योत जला सकते हो 
तमाशा मूवी में भी ऐसा ही प्रस्तुत किया गया है हम रोजींदी ज़िन्दगी में कोई और है और अंदर से कोई और है वेद हम में से ही कोई एक है क्या आपने महसूस किया है की जब आप छुट्टियों में घूमने जाते हो तो आप के अंदर एक अलग प्रकार की ही एनर्जी होती है आप एक अलग इंसान बन गए होते हो क्यूंकि आपको अपनी मनपसंद चीज कर रहे होते हो हम कोई ना कोई रोल प्ले कर रहे होते है कोई मैनेजर का तो कोई सेल्स पर्सन का कोई अकाउंटेंट,  कोई  एग्जीक्यूटिव का तो कोई इंजीनियर का
इन दिनों आप एक एक दिन को यादगार बना सकते हो जरा सोचिये कब आपको अपने परिवार के साथ रहने का वक़्त मिला था? कब आपको अपने बारे में सोचने का वक़्त मिला था? कब आपने बच्चे के साथ में कोई गेम खेला था? कब आपने अपने माता पिता के साथ पुराणी बाते करके खूब मजे किये थे? कब आपने अपनी बीवी को काम में मदद की थी? कब आपने अपने घर पे  फुल फॅमिली पूरी मूवी देखि थी?
मुझे यहाँ पे ब्लफ्फ़मास्टर मूवी का बोमन ईरानी का खूबसूरत संवाद याद आता है जब वो अभिषेक बच्चन को (रॉय) को समझाता है
तुम्हे ऐसे कितने दिन याद है रॉय? तुम्हारी पहली जॉब? पहला सूट? पहली सैलरी? जब तुमने पहली बार एक लड़की को छूआ, पहली बार चूमा, जब पहली बार तुम्हारा दिल धड़का ? तीस साल की ज़िन्दगी में तुम्हे ऐसे कितने पल है जो तुम्हे याद है? , , , , १०, १५, ३०,.. ३० साल में सिर्फ ३०??? बाकी के दिन का क्या हुआ रॉय” ?
अब में आपको पूछता हूँ की आपको अभी तक के कितने दिन या पल याद है?
जबसे २३ मार्च से लॉक डाउन हुआ है, हम सबको यह सुवर्ण तक मिली है की हम अपने अंदर झांक कर देखे और एक एक पल को यादगार बनाये नयी नयी गेम्स खेले, रूबिक्स क्यूब को सॉल्व करे और बच्चो को सिखाये, पेंटिंग करे, स्टोरी लिखे, योगासन चालू करे, कुकिंग सीखे, नया सॉफ्टवेयर सीखे,  फिर से अपना बचपन जिए, फिर से सिखने की चाहत को पैदा किया जाए
हमारे इर्द गिर्द इतनी सारी नेगेटिविटी फैली है की हम अपने आप को हेल्पलेस महसूस करने लगते है और हां, आप अपने धर्मग्रंथ को पढे और उसमें लिखी बातें समजने की कोशीश करे। मुझे यकीन है ये आपकी आंतरीक शक्ति को जाग्रुत करेगा, एक उमदा मानवीय भावना को बढावा देगा।
जितने भी दिन हमें मिले है उसमें हमने हमारे ज्ञान में, हमारे स्किल्स में जो इज़ाफ़ा करेंगे वोही हमारी असली सक्सेस है वो पांच मिनट जो जनता कर्फ्यू में शाम पांच बजे को सबने एक साथ घंटनाद और तालिया बजा कर सब डॉक्टर्स, नर्सेज, पुलिसकर्मी और सभी सेवा कार्यो के साथ जुडी हुई आवाम के लिए बजाया था वो पल  मुझे ज़िन्दगी भर याद रहेगा आप को ??

दूसरा यादगार पल पांचवी अप्रैल को रात ९ बजे करने जा रहे है आप ऐसे कितने पल बनाने वाले हो? अगर अभी नहीं सोचा तो अभी भी देरी नहीं हुई है, इन दिनों आप अपना पसंदीदा कार्य करे और मुझे विश्वास है की हम सब एक पॉजिटिव भारत और विश्व बना सकते है

P.N. - सभी  पति के लिए यह  फील करने का मौका है की उनकी हाउसवाइफ पुरे दिन-भर घर में अकेले कैसे फील करती होगी उनकी भी अपनी ख्वाहिश होती है पर घर, पति, और बच्चो में अपना जीवन समर्पित कर देती है आप भी २१ दिन का हाउस-हस्बंड बन कर देखे तनाव भरी जिंदगी में आज कल पति-पत्नि के बिच जो मन – मुटाव हो रहे है, वो मन मुटाव कम होंगे और रिश्ते मधुर बन जाएंगे  - ये वादा रहा।

~ Darshan Gandhi

परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद

अब्दुल हमीद   का जन्म  1 जुलाई , 1933 को   यूपी के गाजीपुर जिले के धरमपुर गांव में   हुआ था।   उनके पिता मोहम्मद उस्मान सिलाई का काम करते थे...