लॉक डाउन और अवसर
सबसे पहले में
आपको तमाशा मूवी का वो दृश्य याद करना चाहता हूँ जो ठीक मध्यांतर से
पहले आता है जब वेद ( रणबीर कपूर), तारा ( दीपिका
पादुकोण) को प्रपोज़ करता है।
तारा : जब से में
कोर्सिका से वापस आयी हु ना, it’s like, it’s like तुम मेरे साथ हो। समझ रहे हो? मुझे तुम्हारा नाम तक नहीं पता। कोई उम्मीद नहीं है की में तुमसे फिर से मिलूंगी? मगर में तुम्हारे साथ हूँ। यह पॉसिबल है? ऐसा फील करना? मुझे पहले मालूम नहीं था।
वेद : और फिर में मिल
गया।
तारा : नहीं! मुझे मिला
एक प्रोडक्ट मैनेजर। जो एक शहर में रहता है, जो बहोत वेल behaved है, पोलाइट है, Decent है।
वेद : तो, तारा तो में हु एक प्रोडक्ट मैनेजर; में रहता हु एक शहर
में। में वो डॉन थोड़ी हु तारा, वो तो एक्टिंग थी ना। वो में एक रोल
प्ले कर रहा था; और यह में रियल में हूँ।
तारा ; नहीं..।
वेद : नहीं का क्या
मतलब?
तारा : तुम रियल में
डॉन हो और इंटरपोल के अफसर। और यहां तुम एक्टिंग कर रहे हो। यह तुम रोल प्ले
कर रहे हो, एक रेगुलर आदमी का रोल जो एक सेट पैटर्न पर चलता है, जो बगैर सोचे हुवे हर काम ऐसे ही करता है जैसे उसे करना चाहिए। यह तुम नहीं हो
वेद। यह सब नकली है। तुम तो नदी में मुँह दाल के पानी पीते हो यार, जानवर की तरह। तुम तो पहाड़ो से बाते करते हो। तुम वो हो वेद। क्या हो गया है
तुमको?
कोरोना वायरस से
जो लॉक डाउन हुआ है, उससे हम सब को एक सुवर्ण तक मिली है।उसने हमको एक ऐसे इंसान से
मिलने का मौका दिया है जो था तो हमारे साथ लेकिन कभी हमने उसे महत्व दिया ही नहीं। वो इंसान और कोई
नहीं हम खुद है। रोजींदी ज़िन्दगी में हम इतने उलझ गए थे की किसीको खुद के
लिए वक़्त ही नहीं था। हम सब में एक वेद है। जो अलग अलग रोल
प्ले करता रहता है जब की अंदर अंदर ही कोई जगह पे घुटन महसूस करता होगा। हर एक इंसान में
कोई एक बात तो होगी जो औरो से उसको अलग करती होगी। लॉक डाउन में
आपको यही चीज़ ढूंढनी है। अपनी रुकी हुई सी ज़िन्दगी में फिर से आशा की ज्योत जला
सकते हो।
तमाशा मूवी में भी ऐसा
ही प्रस्तुत किया गया है। हम रोजींदी ज़िन्दगी में कोई और है और अंदर से कोई और है। वेद
हम में से ही कोई एक है। क्या आपने महसूस किया है की जब आप छुट्टियों में घूमने
जाते हो तो आप के अंदर एक अलग प्रकार की ही एनर्जी होती है। आप एक अलग इंसान
बन गए होते हो। क्यूंकि आपको अपनी मनपसंद चीज कर रहे होते हो। हम कोई ना कोई
रोल प्ले कर रहे होते है। कोई मैनेजर का तो कोई सेल्स पर्सन का। कोई अकाउंटेंट, कोई एग्जीक्यूटिव
का तो कोई इंजीनियर का।
इन दिनों आप एक एक
दिन को यादगार बना सकते हो। जरा सोचिये कब आपको अपने परिवार के साथ रहने का वक़्त मिला
था? कब आपको अपने बारे में सोचने का वक़्त मिला था? कब आपने बच्चे के साथ में कोई गेम खेला था? कब आपने अपने माता
पिता के साथ पुराणी बाते करके खूब मजे किये थे? कब आपने अपनी बीवी
को काम में मदद की थी? कब आपने अपने घर पे फुल फॅमिली पूरी मूवी देखि थी?
मुझे यहाँ पे ब्लफ्फ़मास्टर
मूवी का बोमन ईरानी का खूबसूरत संवाद याद आता है। जब वो अभिषेक
बच्चन को (रॉय) को समझाता है।
“ तुम्हे ऐसे कितने
दिन याद है रॉय? तुम्हारी पहली जॉब? पहला सूट? पहली सैलरी? जब तुमने पहली बार
एक लड़की को छूआ, पहली बार चूमा, जब पहली बार
तुम्हारा दिल धड़का ? तीस साल की ज़िन्दगी में तुम्हे
ऐसे कितने पल है जो तुम्हे याद है? १, २, ३, ५, १०, १५, ३०,.. ३० साल में सिर्फ ३०??? बाकी के दिन का क्या हुआ रॉय” ?
अब में आपको पूछता
हूँ की आपको अभी तक के कितने दिन या पल याद है?
जबसे २३ मार्च से
लॉक डाउन हुआ है, हम सबको यह सुवर्ण तक मिली है की हम अपने अंदर झांक
कर देखे और एक एक पल को यादगार बनाये। नयी नयी गेम्स खेले, रूबिक्स क्यूब को सॉल्व करे और बच्चो को सिखाये, पेंटिंग करे, स्टोरी लिखे, योगासन चालू करे, कुकिंग सीखे, नया सॉफ्टवेयर सीखे,
फिर से अपना बचपन जिए, फिर से सिखने की चाहत को पैदा
किया जाए।
हमारे इर्द गिर्द
इतनी सारी नेगेटिविटी फैली है की हम अपने आप को हेल्पलेस महसूस करने लगते है। और हां, आप अपने धर्मग्रंथ को पढे और उसमें लिखी बातें
समजने की कोशीश करे। मुझे यकीन है ये आपकी आंतरीक शक्ति को जाग्रुत करेगा, एक उमदा
मानवीय भावना को बढावा देगा।
जितने भी दिन हमें
मिले है उसमें हमने हमारे ज्ञान में, हमारे स्किल्स में जो इज़ाफ़ा करेंगे वोही हमारी असली सक्सेस है। वो पांच मिनट जो
जनता कर्फ्यू में शाम पांच बजे को सबने एक साथ घंटनाद और तालिया बजा कर सब
डॉक्टर्स, नर्सेज, पुलिसकर्मी और सभी सेवा कार्यो
के साथ जुडी हुई आवाम के लिए बजाया था वो पल
मुझे ज़िन्दगी भर याद रहेगा। आप को ??
दूसरा यादगार पल
पांचवी अप्रैल को रात ९ बजे करने जा रहे है। आप ऐसे कितने पल बनाने वाले
हो? अगर अभी नहीं सोचा तो अभी भी देरी नहीं हुई है, इन दिनों आप अपना पसंदीदा कार्य करे और मुझे विश्वास है की हम सब एक पॉजिटिव
भारत और विश्व बना सकते है।
P.N. - सभी पति के लिए यह
फील करने का मौका है की उनकी हाउसवाइफ पुरे दिन-भर घर में अकेले कैसे फील करती
होगी। उनकी भी अपनी ख्वाहिश होती है पर घर, पति, और बच्चो में अपना जीवन समर्पित कर देती है। आप भी २१ दिन का
हाउस-हस्बंड बन कर देखे। तनाव भरी जिंदगी में आज
कल पति-पत्नि के बिच जो मन – मुटाव हो रहे है, वो मन मुटाव कम होंगे और रिश्ते
मधुर बन जाएंगे - ये वादा रहा।
~ Darshan Gandhi
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